उटी का आखरी दिन ओर उसकी आखरी जगह जहा पे सारे मसाले मिलते थे जिसे लोन्ग, इलाइची, दालचिनी, मरी ओर निलगिरी कि भी काफ़ी वस्तु ए जेसे निलगिरी ओइल, सेन्डल वुड ओइल सब बिना प्रोसेस का प्योर मिलता है ड्युटी फ़्री उन्हो ने लोन्ग मे से निचोड के तेल निकाल के दिखाया आज तिन साल के बाद भी जब हमारी दाल मे तडका लगता है पुरे मोहोल्ले मे खुश्बु आती है अगर आप कभी भी उटी जाओ तो वहा से स्पाइसीस लिए बिना नही लोट ना
उटी कि यादे मन मे समेटे हमे मदुराइ जाना था, हमारी ट्रिप मेसुर वापस लोट रही थी हम वहा के छोटू से बस अड्डे पे उतर गए हमे मदुराइ कि बस जो पकड नि थी....
अलविदा केहना हमेशा मुश्केल होता है खास कर उसे जिसने चंद समय मे हमे अपना बना लिया हो कुछ शेहेर एसे होते है जिन्से एक अलग लगाव होता है होमटाउन से खास नही पर दिल के पास होता है क्योंकि वहा वो किससे होते है जिसकी एक मात्र याद भी मुस्कान दिला जाती है तो
प्यारे उटी,
तेरा रंग गुलाबी, थका के निकाल दे सारी नवाबी,
चेन की निन्द दिलाए ये खुबी
हर जगह खज़ाने मानो अंगूठी मे रुबी...
शुक्रिया इस यायावर को यादो का बसेरा देने के लिए...
मदुराइ कि कहानी फ़िर कभी फ़िलहाल ये कहानी यही तक...