हास्य व्यंग्य कविता .
विषय .कुर्सी ..
कुर्सी महारानी ,की बड़ी अजब कहानी है ।
हर कोई इसे पाने ,अपनी लार टपकाता है ।।
इसके आगे जन्नत का ,सुख व्यर्थ है ।
एक बार जो पा ले ,वह सदीयों तक नहीं छोड़ता है ।।
इसके आगे ,हसीना का सुख भी बेकार है ।
इसके लिए ,कयी पापड बेलने पड़ते है ।।
इसके आगे रिश्ते नातें ,सब व्यर्थ होते है ।
इसके लिए लोग ,खून की होली खैल लेते हे ।।
इसको पाकर ,अपनी प्राण प्यारी को भी भुल जाते है ।
इसका नशा , कभी जीवन में उतरता नहीं है ।।
यह पल में लोभ ,लालच ,पांखड़ सीखा देती है ।
ईश्वर भी मांगे तो ,कोई देने तैयार नही होता है ।।
ईमानदार लोग इसे ,कभी पा ही नहीं सकते है ।
यह तो कलियुग की ,महारानी है ।।
इसके लिए लोग गधे को ,भी बाप कहने तैयार होते है ।
कहता बृजेश इसके आगे ,छप्पन पकवान भी फीके लगते है ।।
बृजमोहन रणा ,कश्यप ,कवि ,अमदाबाद ,गुजरात ।