रात्रि रचना
शोर है घरों में,
रास्ते सुनसान है,
फिर भी हसता खेलता
ये नया जहान है।
गाड़ियों की चाबियां
शॉपिंग वाली भाभियां,
हिचकती है निकलने से
धूप में पिघलने से।
शुरू हुआ है थोड़ा थोड़ा
कुछ अभी भी बंद है,
पैसे कमा के घर चले
उसका ही प्रबंध है।
बच्चे पढ़ने आए ना
फिर भी शाला हे खुली,
सब लौट आएंगे
ये उम्मीद है मिली।
आएगी वो ज़िन्दगी
जो खो गई है कहीं,
थोड़ी देर रख लो सब्र
धैर्य धरो तो सही।
भविष्य के गर्भ में
छुपा सब अनजान है,
फिर भी हसता खेलता
ये नया जहान है।