तसल्ली भरे शब्द सौंप दूँ !!
समय का साक्षात्कार
कभी यूँ भी होगा
किसने सोचा था
लम्बी-लम्बी योजनाओं में
समय के अवरोध
जीवन पर्यंत
याद रहेंगे, अपने अपनों से
मिलने के लिए
महीनों की प्रतीक्षा !
....
इजाज़त नहीं देता मन,
घटित घटनाओं को
अनदेखा कर
आगे बढ़ने को
पथिक से इन शब्दों की
चहलकदमी से सोचती
किसके दर्द को कम
किसके को ज्यादा आंककर
मैं तसल्ली भरे शब्द सौंप दूँ !!
…
किसके आँसुओं को
पोछकर उंगलियों से अपनत्व में
किसके काँधे पर,हौसले से भरी
हथेली रख दूँ, दिल, दिमाग
की,कहूँ तो ….
इन दिनों, इन दोनों का
कोई तालमेल नहीं बैठता
दोनों ही बस बौखलाये
फिरते हैं, सच कुसूरवार कौन ?
सज़ा किसी और को मिलती है !!!
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