जिस तरह रूह को एक आह का हक़ होता है ।
इश्क की प्यास को एक चाह का हक़ होता है।।
बक़्त बेवक्त जब भी दुश्वारियों के आलम में ।
बाज़्म में बैठकर एक गुनाह का हक़ होता है।।
बंद लव होते हुए अल्फाज निकल जाते हैं।
तेरी चाहत भरी एक निगाह का हक़ होता है ।।
हमने तो चाहत में तेरी जिन्दगी गुजारी मगर।
चंद अशआर को वाह- वाह का हक़ होता है।।
इस तरह तूने मुझे नजरों से गिराया फिर भी ।
अश्क ढलते ही तेरी परवाह का हक़ होता है ।।