विधा - काव्यगीत
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प्यारी सी सोन चिरैया है ,
बुलबुल सी न्यारी है बेटी ,
घर-द्वार बना जिससे मंदिर ,
ऐसी मृग - कस्तूरी है बेटी ।।
आँगन की प्यारी तुलसी है ,
पूजा की महकती धूपों सी ,
सूरज की पहली मुस्कान यही ,
चन्दा की चाँदनी हैं बेटी ।।
मनहार करौंदी पुष्प यही ,
उपवन में उमड़ती तितली -सी ,
मधुऋतु में चहकती कोयल है ,
पतझड़ में चमक सी हैं बेटी ।।
निर्झर नयनों की नीर यही हैं ,
करूण हृदय की पीर यही हैं ,
है चैन यही व्याकुल मन की ,
ममता की सागर हैं बेटी ।।
यह छाँव जेठ की दुपहरी की ,
है ठाँव तपिस से बचने की ,
डूबते को तिनका बेटी है ,
अन्धे की लकड़ी हैं बेटी ।।
बेटी न पराया धन केवल ,
बाबा के कलेजे की टुकड़ा ,
है भाई की प्यारी शहजादी ,
घर की खुशहाली है बेटी ।।
बेटी है दीप दिवाली की ,
बेटी रंग है होली की ,
उपहार यही है क्रिसमस की ,
ईद की रौनक है बेटी ।।
बेटी तो लाज पिता की है ,
बेटी ही माता की इज्जत ,
बेटी तो नाज घरों की है ,
शिक्षा के लायक है बेटी ।।
बेटी ही दुर्गा - लक्ष्मी है ,
बेटी है झाँसी की रानी ,
बेटी ही राधा - मीरा है ,
है जनकनंदिनी भी बेटी ।।
दो कुल की है यह मर्यादा ,
संस्कृति की सुंदर परिभाषा ,
मान राष्ट्र की शान यही हैं ,
जीवन - संचार करे बेटी ।।
यह सुन्दर श्रृंगार प्रकृति की है,
गीतों की झंकार मधुर सी है ,
यह प्रेम सृजन करती जग में,
सृष्टि की संबल हैं बेटी ।।
बेटी पर जो अत्याचार करें ,
अस्मत पर उसके वार करें ,
हत्यारा है वह संस्कृति का ,
रक्षा की धागा है बेटी ।।
आ बेटी से हम प्यार करें ,
हर खुशियाँ उसपे वार करें ,
ना उनमें कोई अंतर हो ,
बेटा के सदृश होवें बेटी ।।
प्यारी सी सोन चिरैया है ,
बुलबुल सी न्यारी है बेटी ,
घर-द्वार बना जिससे मंदिर ,
ऐसी मृग - कस्तूरी है बेटी ।।
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रचना : रमेश तिवारी लल्लन गुलालपुरी
पता : गुलालपुर सहसों प्रयागराज उत्तर प्रदेश