ॐ जय जगदीश हरे ब्रह्मदत्त
ॐ
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आरती भगवान विष्णु जी की ब्रह्मदत्त
सभी भक्तो का भगवान विष्णु को बारंबार प्रणाम नमन नमस्कार है यह है
आज की आरती.......
श्री विष्णु की आरती
आरती का अर्थ है पूरी श्रद्धा के साथ परमात्मा की भक्ति में डूब जाना।
भगवान को प्रसन्न करना। इसमें परमात्मा में लीन होकर भक्त अपने देव
की सारी बलाए स्वयं पर ले लेता है और भगवान को स्वतन्त्र होने का
अहसास कराता है।
आरती को नीराजन भी कहा जाता है। नीराजन का अर्थ है विशेष रूप से
प्रकाशित करना। यानी कि देव पूजन से प्राप्त होने वाली सकारात्मक
शक्ति हमारे मन को प्रकाशित कर दें। व्यक्तित्व को उज्जवल कर दें। बिना
मंत्र के किए गए पूजन में भी आरती कर लेने से पूर्णता आ जाती है।
आरती पूरे घर को प्रकाशमान कर देती है, जिससे कई नकारात्मक
शक्तियां घर से दूर हो जाती हैं। जीवन में सुख-समृद्धि के द्वार खुलते हैं।
श्रीविष्णु की आरती
ॐ जय जगदीश हरे, प्रभु जय जगदीश हरे।
भक्तजनों के संकट, क्षण में दूर करे।।
ॐ जय जगदीश हरे।
जो ध्यावे फल पावे, दुख बिनसे मनका।
सुख सम्पत्ति घर आवे, कष्ट मिटे तनका।।
ॐ जय जगदीश हरे।
मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूं मैं किसकी।
तुम बिन और न दूजा, आस करूं जिसकी।।
ॐ जय जगदीश हरे।
तुम पूरण परमात्मा, तुम अंतर्यामी।
पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सबके स्वामी।।
ॐ जय जगदीश हरे।
तुम करुणा के सागर, तुम पालनकर्ता।
मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता।।
ॐ जय जगर्दीश हरे।
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति।
किस विधि मिलू दयामय, तुमको मैं कुमति ।।
ॐ जय जगदीश
दीनबन्धु, दुखहर्ता ठाकुर तुम मेरे।
अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा तेरे।।
ॐ जय जगदीश हरे।
विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा।
श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा।।
ॐ जय जगदीश हरे।
ॐ जय जगदीश हरे, प्रभु जय जगदीश हरे।
भक्तजनों के संकट, क्षण में दूर करे।।
ॐ जय जगदीश हरे। ब्रह्मदत्त त्यागी हापुड़
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