वजूद
अपने की चाह में ,
अपनों को छोड़कर आ गई।
सोचा था कोई तो अपना होगा,
पर वह तो पराया निकला।
चाही थी जगह दिल में ,
पैरों में जगह मिल गई।
पैरों में जगह क्या मिली,
पैरों की जूती बन गई।
ज्यादा समय भी ना बिता था
कि पैरों कि धूल बन गई,
ना जाने धूल बनकर कब
पैरों से लिपट गई।
सोचा कहीं पैरों को ये ना लगे
कि पीछे ही पड़ गई।