कोई कहता है, 'लाल' है इश्क़,
किसी ने इश्क़ का रंग 'सफेद' कहा,
तो किसी ने 'काज़ल सा काला' माना इश्क़ को,
पर क्या इश्क़ का कोई एक रंग है ? शायद नहीं..
यही 'लाल' सा रगों में बहता है,
नए सवेरे सा 'केसरी' में उगता है,
कभी पतझड़ सा 'पीला'पन है,
पर सावन में सब 'हरा' कर देता है,
यही अनंत 'नीला' आसमान है,
यही चांद-सितारों से रोशन, 'काली' रात की शान है,
यही 'सफेद' सा निश्छल है,
यही 'गुलाबी' सा उज्ज्वल है,
कभी अविरल जल में "झिलमिलाता" सा दिखता है,
और कभी हवा सा, होकर भी "नहीं" दिखता है।
इश्क़ अतरंगी है, इसीलिये तो ..
इश्क़ सतरंगी है।