क्यों नुमाइश करू में अपने माथे पर शिकन की ,
में अक्सर मुस्कुरा के इन्हे मिटा दिया करती हूं ।
क्योंकि जब लड़ना है खुद को खुद ही से ..! तो हार और जीत में कोई फर्क नहीं रखती हूं.. हारू या जितुं कोई रंज नहीं है ,
कभी खुद को जीता देती हूं , कभी खुद ही जीत जाती हूं ,इसीलिए भी मुस्कुरा दिया करती हूं ।
#खुद