Hindi Quote in Story by Prabodh Kumar Govil

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सॉरी, नहीं लिख पा रहा लघुकथा!
मैं अपनी मेज़ के सहारे बैठा एक लघुकथा लिखने की कोशिश बड़ी देर से कर रहा था, पर हो ही नहीं रही थी। लिखता और काटता।
मुझे लगा कि शायद सारी गलती उस अख़बार की है जो मैंने मेज़ पर बिछा रखा है।
जब किसी का दुख उकेरो, किसी न किसी "पॉजिटिव" न्यूज़ पर नजर चली जाती है। कुछ मज़ेदार सा लिखने लगो कि सामने नेगेटिव खबर अा जाती है। भ्रष्टाचार पर लिखने की सोची तो मरी "पेड न्यूज़" सामने आ गई। अब आप जिनकी कलई खोल रहे हो, उनकी तो यहां स्तुति छपी है।
क्या मुसीबत है? मुझे उन संपादक जी पर गुस्सा आने लगा जो कह रहे थे कि कल तो "लास्ट डेट" है, आज ही भेजो।
मुझे ऐसे में अपनी दिवंगत पत्नी की याद आने लगी। अगर वो होती तो...?
अगर वो होती तो मेरी मेज़ पर अख़बार की जगह सुन्दर मेज़पोश बिछा होता। उस मेज़पोश पर रंगीन फूल काढ़ने के लिए वो तरह- तरह के धागे लाकर रखती जिसका सुन्दर डिब्बा कमरे में सामने कहीं रखा होता। डिज़ाइनों की किताब भी।
डिब्बे में सुई- धागा सब होता। अगर कभी सुई हाथ में चुभ जाए तो लगाने के लिए मेडिकेटेड टेप लाकर भी वो रखती। फ़िर उसके लिए एक छोटा सा फर्स्ट- ऐड बॉक्स भी होता। उनकी रोज़ डस्टिंग के लिए ज़रूर वो नेपकिन लाती और उसे टांगने के लिए सुन्दर सी खूंटी ज़रूर लगाती। कभी खूंटी ढीली न हो जाए इसका पूरा एहतियात वो बरतती। कुछ एक्स्ट्रा कीलें और हथौड़ी हम ज़रूर लाते, और उन्हें रखने को प्यारी सी एक अलमारी बनवाते। अलमारी पर एक और सुन्दर सा कवर...वो जैसे ही देखती कि मैं लघुकथा नहीं लिख पा रहा हूं, फ़ौरन रसोई में जाकर मेरे लिए चाय बना लाती। सादा नहीं, बढ़िया मसालेदार चाय। सुन्दर से रंगीन प्याले में...
फ़िर कहती, लघुकथा के साथ पुराना फ़ोटो मत भेजना, लाओ मैं नया खींच दूं!
मैं कुछ समझ पाता उसके पहले ही वो नई शर्ट उठा लाती...लो बदल लो!
मैं कुछ गंभीर दिखने की कोशिश में मुस्कराने से बचता और वो कहती... छी, तुम्हारे मोबाइल का कैमरा बिल्कुल अच्छा नहीं, चलो हम नया मोबाइल ऑर्डर करते हैं "ऑनलाइन"....
हां, याद आया, मैं संपादक जी को ऑनलाइन ही भेज दूंगा लघुकथा।
मैं अपना काग़ज़ उठा कर फाड़ देता हूं और अख़बार भी उठा कर डस्टबिन में फेंकने चला जाता हूं!

Hindi Story by Prabodh Kumar Govil : 111448135
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