डरता हूं,
तुम्हें प्यार करने से नहीं,
इस समाज से, इस दुनिया से,
नात जात धर्म मजहब की बाते करने वाले हैवानों से डरता हूं,
प्यार करने वालो के दुशमनों से डरता हूं,
इंसान में बसे हैवानों से डरता हूं,
उनकी हैवानियत से डरता हूं,
लड़ सकता हूं तुम्हें पाने के लिए सारी दुनिया से,
पर में तो इंसान हूं,
सिर्फ़ एक तुम्हें पाने की खातिर लोगो को मार कर, मिटाकर,
उनकी तरह हैवान ना बन जाऊ,
उस बात से डरता हूं,
prem solanki...