#स्वयं #खुद
ऊपर से अत्यंत हँसती हूँ मैं..
भीतर ह्रदय सदैव तड़पता रहा ,
चिल्लाता, बिलखता पुकारता रहा
निरस सा जीवन सूना हो गया
अंदर भरे सारे भाव तीव्र सूख गए
सहजता, सरलता, निर्मलता मिट गई
बेचैनी ह्रदय में व्यथा बढ़ाती रही
खुशी कब से रुठ सी गई
लाचारी का छाया चेहरे पर छा गया
निराशा-हताशा ने चारों ओर से घेर लिया
मेरी तड़प, मेरी प्यास, मेरी खोज
कोई आजतक समझ ही नहीं पाया
मुझे कौन प्रेम से इतना सँवार दें ?
जितनी में प्रणय पुष्प बनकर खिल जाऊँ
अब तो खण्ड-खण्ड होकर मर रही हूं
रास्ता धूंधला सा नज़र आता है
रेत का झोंका नैनों में चुँभता रहा
हर क्षण, हर घड़ी, हर वक्त
जाने साँसों में साँस मैं ढूँढ़ती रही
खुदको खुद से ज्यादा मिटाती रही..!!
- शेखर खराड़ी ईड़रिया
२६/५/२०२०