गजल
जिसकी हमें तलाश थी
वह हमसफर हो तुम
मैं ठहरा आवारा राही
पर,मेरी मंजिल हो तुम
जब से इस दिल में तुम दस्तक दी हो
क्या बताए?तुम किराएदार बन गई हो
तुम्हारी पायल जब भी बजती है
मेरे सीने में झंकार सी उठती है
यह इश्क, यह मोहब्बत क्या होती हैं
तुमसे मिलकर ही इनसे वाफिक हुए है
गर किसी से आशिकी करना गुनाह है
पर,तुम साथ दो यह गुनाह भी कबूल है
यह हवाएं क्यो खुशबू बिखेर रही है?
शायद,तुम्हारी बदन को छूकर गुजरी है
मैं गर गजल लिखूं तो यह मुक्कमल कब होती है?
तुम्हारी लब्जों की अल्फाजों से मुक्कमल होती है
:कुमार किशन