बस ओर कार से ज़ादा रैल अच्छी लगती है मुझे,
ट्रेन के डिब्बो मे रोज़ मुसाफ़िर कभी ना मिलने के वादे के साथ यादें बनाते..
मइ महिने मे महाराष्ट्र कि गरमि को बीच से चिरती ट्रेन आगे बढे जा रही थी,
हमारे सामने एक देवरानी-जेठानी कि जोड़ी दोनो के मिलाके पांच बच्चे , एक बुजुर्ग जोडो मे दर्द वाला जोडा ओर एक अंकल थे,
मेरी जगह फ़िक्स थी !
बेठ्ना हो तो खिडकी कि पास वालि शिट ओर सोना हो तो सब से उपर वाली बर्थ...
थेपले के अदान-प्रदान के साथ पापा सह यात्री से किस्से बाट रहे थे, मम्मी भी बच्चों से दोस्ती बढा रही थी..!
ओर मैं?
मैं थी मेरे फोन के साथ, दोस्तो के साथ, चार्जीग पोइन्ट के साथ!
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ट्रेन कि खिडकी के साथ, कानो मे घुलते गानो के साथ, अपने साथ, सुबह से शाम ओर रात करते कुदरत के साथ