आज मैने घर की खिड़की से किसी बच्चे को रोते देखा अनजान था मगर उसे नंगे पैर चलते देखा तेज धूप में देखा खींच रहा था अपनी मांँ का पल्लू उसे मैंने पेट पर हाथ रगड़ के देखा सूजा हुआ पैर काली-काली शक्ल थी उसकी माँ माँ भूख लगी है मैने उसे एड़ी के बल नंगे बदन देखा जेब में उसके ना थे औना और ना पोटली में खाना पेट की आग बुझा रही थी पानी के घूंट पिलाते उसकी माँ को देखा
आंसू थे उसके के आंखों में अपनी औलाद को यू उसने तड़पते देखा
सोचा नहीं था ऐसा भी कभी दिन आएगा गए थे जीवन सुधारने को शहर की और मगर शहर ने एक गरीब को धोखा देते देखा
चल बेटा थोड़ी दूर और बस गांव के लोगों को मैंने यहां से जाते देखा कोई सुने ना सुने तू सुन मेरा बेटा एक बार पहुंच जाए अपने गांव की मिट्टी पर तो फिर कभी ना जाएंगे कभी अब हम शहर
रोते हुए उस और मिट्टी उड़ाते हुए देखा😔😔 Monty kandelwal ✍🏻✍🏻