गजल
वह मेरी इश्क से अंजान नहीं
फिर भी रुसवा मुझे करती हैं
खता उसकी नहीं है यारों
यह तो हसीनों की पुरानी आदत है
देखों यह चाँद भी इन सितारों संग आया है
शायद इश्क भी इनको रास आया है
देखता हूँ कब तक वो इश्क को रुसवा करती है
इस प्यासी धरती की प्यास आखिर बादल ने बुझाया है
इश्क की जज्बात वो क्यों दिल मे दबाया करती है?
जाने क्यों लोग इश्क को बदनाम किया करते हैं?
:कुमार किशन कीर्ति