केसरिया ये आसमान ,मन भी हे रंगो से भरा ,
में खड़ी अपने आशियाने में , खोल के मेरे मन की गिरहा,
जल्द ही में भी उड़ पाऊँगी , शहर मेरा चमक दमक से भरा .
शाम होगी फिर सजीली , होगा फिरसे वही सवेरा ,
ये रंगो की यही रंगोली , फिर त्योहारों की थाली से भरा
,मेरा शहर और मेरी दुनिया ,
तुभी यही सोच रहा हे क्या मेरी तरहा! (निधि).