"दिन तो बढ़िया रहा तुम सुनाओ" से शुरू हुआ बातों का सिलसिला देर तक चलता रहा। ऑफिस सहेलियाँ पीजी मम्मी पापा कितनी बातें होती हैं प्रिया के पास करने को। वह सुनता रहा मुस्कुराता रहा पंखे की हवा में उड़ते रेशमी केश गुलाब की पंखुड़ियों से हिलते होंठों को देखता रहा। नीले गाउन में ढंके बंधे उसके उरोजों को नजरों से पीता रहा। उनके अपने पास और खुद को उनके पास होने की चाहत में डूबता उतराता रहा। प्रिया लगातार बोलती रही वह बीच-बीच में हाँ हूँ करता रहा लेकिन शायद ही वह कुछ सुन और समझ रहा था। वह तो खोया था उन घाटियों में जहाँ जीवन का परम सुख है, ऐसा सुख जिसे पाए बिना जाना नहीं जा सकता।
देह की दहलीज पर कड़ी 6