जन्म- ०२

तेरे शब्दों को पढ़कर, मै तेरी गीता हो जाऊ
बनके आ मेरे राम तू, मै तेरी सीता हो जाऊ
किरण बनकर मिलूं तेरी ज्योति से अगर मै
सूरज जैसी तेजस्वी और उजिता हो जाऊ
भर सर्वस्व तुझ ही में, मै स्वयं रीता हो जाऊ
मुक्त कर दे, तो मै अकिंचन अचीता हो जाऊ

तेरे रंग में मिलकर मै रंग दूजा हो जाऊ
तुझे मानकर "मोहन", मै "पूजा" हो जाऊ
पड़े जो तेरी छाई मुझपर मै गुंजा हो जाऊ
तेरे शब्दों में घुलकर डली शहद हो जाऊ
बूंद मिलती है जैसे सागर में होती वृहद
वैसे मिलकर तुझमें मै हो जाऊ अनहद

तेरे हर डाल की मै पात पात गिनकर
इसी जनम वृक्ष बरगद का हो जाऊ
बढ़ाऊ कदम कदम पाने को जो लक्ष्य
तू बने लेखनी तो, मै कागद हो जाऊ
तुझ से शिक्षित होकर पारंगत हो जाऊ

देखूं तेरा अतिसुंदर चितवन,
तो स्वयं मै गदगद हो जाऊ
पाकर तेरा आधार, पैर अंगद हो जाऊ
यदि अर्धनारीश्वर में जो तू बने शिवा
पाकर तेरी शक्ति, मै परांगद हो जाऊ

#षणानन

Hindi Poem by Abhinav Bajpai : 111438227
Abhinav Bajpai 4 year ago

जी धन्यवाद

Sangita 4 year ago

कितना मधुर शब्द का मिश्रण.. शुद्ध हिंदी का मज़ा आगया

shekhar kharadi Idriya 4 year ago

अत्यंत सुंदर अभिव्यक्ति...

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