#Kavyotsav -2 . 0
माँ झूठ बोलती है..... कब?
जब पेट भर खाना ना हो
बनाने का कोई बहाना ना हो
माँ कहती है मुझे भूख नहीं है ,
तेरा खाना बहुत जरूरी है
मन कहता है माँ झूठ बोलती है।।
जब कोई स्वादिष्ट व्यंजन हो
सबका दिल ललचाता हो
माँ आंख बचाकर उंगलियाँ चाटती है,
कहती है यह मुझे पसंद नहीं
तब माँ झूठ बोलती है।।
मुझे पढ़ाने के लिए मैं दिन-रात एक बनाती है
कपड़े सीने का काम कर सारी रात बिताती है,
मैं कहता हूं मैं भी हाथ बँटाता हूं,
माँ कहती है तू पढ़ मैं दोपहर को सो चुकी हूँ,
तब माँ झूठ बोलती है।।
मैंने दिन रात ऊँची पढ़ाई की
बड़े होकर खूब कमाई की
माँ से कहा तू मेरे साथ रह, बहुत हुआ तू और ना सह
माँ ने कहा तू मेरी ना सोच
ऊंची जिंदगी जीने का मुझे नहीं है शौक,
दिल ने कहा माँ झूठ बोलती है।।
उसे कैंसर हुआ बिस्तर पर लेटी थी वो
मैं कर रहा था प्रार्थना,
वह पड़ी मुस्कुराई, सिर पर हाथ फेरा
और बोली मैं ठीक हूं बेटा, तू ना रो
मैं ठीक हूं बेटा, तू ना रो,
मैं फूट-फूट कर रोया और बोला
माँ, क्यों झूठ बोलती है?
तू ,क्यों झूठ बोलती है?।।।।
―रेनू जिंदल