कोरोना की सिख
हायरे समय ये कैसा दिन दिखलाया
भूली भटकी इंसानी नस्ल को
जीने का सलीखा सिखलाया |
आज गंगा मया स्वर्च्छ, नर्मदा मा आस्वस्थ
ओजोन लेयर भी मुस्कुराया ||
कोरोना ने परिबार को एक कराया,
परिबेश को राहत की सांस दिलाया |||
सर के उपर छत, दो वक़्त की रोटी
यही हे जीबन जीने का आधार,
बाकि सब दिखावा, निराधार
आज इंसान बेबस, बिज्ञान लाचार |||
मंगल पे मिट्टी ढूंढ़ने वालो, करलो अपनी हार स्वीकार
उतार दो सर्बशक्तिमान होने का गुरुर
कोई तो हे जिसके आगे हे आदमी मजबूर |||||