Hindi Quote in Poem by Saroj Verma

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ढ़लती उम्र..!!

उम्र ही नहीं ढलती
और भी ढलता है इसके
साथ साथ बहुत कुछ
बालों में आती सफेदी
चेहरे पर पड़ती झुर्रियां
दर्दो की भरमार
और बुढ़ापा स्वाद
भी तो छीन लेता है
सब्जी से मिर्च
दाल से नमक
और चाय से चीनी
ये सब तो बर्दाश्त
कर ले भी इंसान
लेकिन बुढ़ापे में जब
सहारा होकर भी बेसहारा
कर देता है तब
असहनीय होता है
देखा है ऐसे बहुतों
को मैंने वृद्धाश्रम
में रोते रोते हुए
दरवाजे पर टकटकी
लगाए हुए कि कोई
तो अपना आएगा
आज नहीं तो कल..!!

सरोज वर्मा...!!

Hindi Poem by Saroj Verma : 111433556
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