ह्रदय में जो उमड़ती रहती
बाते ये बाहर निकलने को
मन भटकन मतवाली चाह
खोजे क्यों आँखें अपनो को
जुबां भी घबराती हिलने से
पास नही बचता कुछ बताने को
कहना है क्या.. यही समझ न पाते हैं
किसी पर न कोई अधिकार जताते हैं
बात जो है अंदर, बोलना सब चाहते हैं
बोलते हैं पर सब कुछ कहाँ कह पाते हैं