कोई है जो तुम्हें देख रहा है!
तुम्हारी देह की लपटों में आंखें सेक रहा है।
किसी तरुवर की आड़ से, शीशे के उस पार से
कोई है जो तुम्हें देख रहा है..!
मार्केट की भीड़ से, अपने मकां के नीड से
बहुमंजिला मॉल से, राजू भैया की टी-स्टॉल से...
कोई है जो तुम्हें देख रहा है..!
खड़ा है दूर पर नजदीक से झांक रहा है।
बनके भंवरा गुलमोहर को ताक रहा है।
कोई है जो तुम्हें देख रहा है..!
अपने हाथों की लकीरों में, स्लाइड होती हुई तस्वीरों में
एक टक! अपलक! निगाहें गड़ा कर,
कोई है जो तुम्हें देख रहा है..!
कहीं दूर! बना के अरमानों का चश्मा
रुमाल से आंखें .पोछ रहा है।
धुंधभी-धुंधली आभा में भी...
कोई है जो तुम्हें देख रहा है..!
वासनाओं में लिपटा पतंगा
शमा के आलिंगन को तड़प रहा है।
पाने को मोक्ष शमा के ताप से झुलस रहा है।
कोई है जो तुम्हें देख रहा है।
अपने को तू कवल ना समझना
ना अपने को राधा उसे कान्हा।
वह भंवरा है पाकर सुधा,
पराग की आभा छोड़ जाएगा।
वह रंगरसिया हैं पाकर रस,
गालों पर गुलाल मल जाएगा।
वह भूखा है बुझा कर क्षुध,
भोजन पत्र गंदला छोड़ जाएगा
कमसिन है तू संभल जा......!
इसे प्रेम समझ न उलझ जा।
वह लाख तुझे देख रहा है,
वह लाख तुझे चाह रहा है।
पाने के लिए तुझे लाखों जतन कर रहा है।
तू चाहे तो उसे तार दे, नहीं तो नजरों से उतार दें।
अपने पल्लू को जरा जोर से झटक
झटक दे इन परागो को
वह तो भटका है तू ना भटक
देख जरा उन आँखों को
जो तुम्हें देख रही है
कोई है जो तुम्हें देख रहा है....!
#Rajesh_mewade