Hindi Quote in Poem by Saurabh Pant

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देख बेल को हरा-भरा,
लिखने को मेरा मन करा।
कल तक पड़ी थी जो मुरझाए,
देखने में एख आंख न भाए।
परिस्थिति जब थी विपरीत,
पत्ते दिखा के भागे पीठ।
क्या उसने नहीं सोचा होगा,
अकेले मुझसे क्या होगा।
शायद वो जिद पे अड़ी थी,
तभी तो अकेले खड़ी थी।
भले कोई न था आसपास,
खुद पर था उसका विश्वास।
वक्त है ये निकल जाएगा,
पत्ता ही नहीं फूल भी आएगा।
जिसका नहीं विश्वास डोलता,
वही हमेशा फलता फूलता।
कल तक थी जो न आंख को भाती,
आज देखो क्या खूब सुहाती।
पत्ता ही नही फूल भी आया,
आंगन संग घर भी महकाया।
समझ कवि को तब ये आया,
कुदरत ने क्या खेल रचाया।
परिस्थिति आड़े जरूर आएंगी,
इरादे जो बुलंद तो न गिरा पाएंगी ।
                            ~सौरभ पंत

Hindi Poem by Saurabh Pant : 111426480
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