धन का बढ़ना ठीक है, पर मन का बढ़ना नाँहि।
धर्म करत ते पूण्य बढ़त है,अधर्म करत ते नाँहि।
प्रवाह का करना ठीक है,लापरवाह होना नाँहि।
एक सीमा में बढ़ना ठीक है,
अति का बढ़ना नाँहि।
बढ़ना -घटना तय है,
आज है तो कल नाँहि।
दिन का होना तय है,पर रात ही रहना नाँहि।
एक स्थिति से आगे होना ही बढ़ने की परिभाषा है,
जब हम बढ़े तो मन ना बढ़े - बढ़े रहने की स्थिति का खुलासा है।।
#बढ़ना
💝~मीठी का मिठु~