बड़े अरसे बाद सैलाब हुवा हु ,
में समंदर से कुछ इस कदर मिला हूँ ।
नदिया नाले तालाब या तक कि ज़रनो को छोड़ कर ,
रत्नों से भरा हुवा फ़िरभी खारा समंदर हुवा हूं ।
पिगला इतना हूँ की अब कुछ भी नही पिगला ,
ख़ाली रेत के ढेर पर बैठा मृगजल हुवा हूं ,
मत सिखाओ मुज को शराफ़त की अदा ,जानता हूं ,
में शरीफों के महोल्लो से गुजर कर शैतान हुवा हूं ।
तूम जो दिखाते हो दिखावेकी दिखावट ,समझता हूं ,
में राम को खुद में बैठा कर फिर रावण हुवा हूं ।
यारो अब तो जान के भी अनजान बनता हूं ,
अवनि का एक टुकड़ा टूटकर हृदय हुवा हूं ।
" हृदय "