यु उड़ कर आ गयी जैसे चहकती चिड़िया,
मन को भी ये भा गई जैसे महकती दुनिया
तितली सी हसीं फुलोसि रंगीन
इतनी मासूम ,जुर्म ना कोई संगीन
कहा से भेजता होगा ये रब ऐसी परिया
मेरे भी आँगन में हे प्यारी सी ये गुड़िया!
उसीसे तोह जुडी हे ,ये जीवन की कड़िया !
छम छम आवाज और खन खन उसकी चुडिया !!
उसके होने से जैसे पूरा घर चहचहाए !
मानो दीवारे भी बोले और परदे गुनगुनाए!
हथेली में सिमट ती थी वोह,
अब तोह गोद में भी न आए
इतनी बड़ी हो गई हे अब मुह्जे ही डाट लगाए!
हर बागान में नहीं खिलती हे ये कलियाँ!
हर घर के नसीब में नहीं होती यह " बेटिया"!! (निधि)