आज की प्रतियोगिता ।
# विषय .चेहरा "
** कविता **
* छंदमुक्त *
लोग असली चेहरा ,छुपाने में माहिर होते ।
नकली चेहरा लगा ,कर धुमते रहते ।।
बाहर से कुछ ,और भीतर से कुछ लगते ।
दिखने में ,बाजीगर कहलाते ।।
ईश्वर को भी पल में ,धोखा देते ।
मानव की क्या ,औकात जो उन्हें जानते ।।
ऐसे मानव किसी के ,हाथ पल में नही आते ।
ऐसे लोगों पर ,कभी विश्वास नही होता ।।
ये पल में अपनों को ,भी धोखा देते ।
ये बहुरुपिए सुदंर ,मुखड़ा सजा कर धुमते ।।
पर भीतर वैर भाव ,के ताने बाने बुनते ।
सांप से भी ज्यादा जहरीले ये ,काटने पर पानी नहीं मांगते ।।
बृजमोहन रणा ,कश्यप ,कवि ,अमदाबाद ,गुजरात ।