बंधा था जो धागा सपना बनके तूट गया, प्रेम के उस साहिल से आंसू बनके रुठ गया...
चल दिया वो मुसाफिर ढुंडता एक नया किनारा, छूट गया था सबकुछ पिछे, मंजिल तो बस बहाना था..
चलता रहा उस पथ पर शायद मिलने की आस थी ,यादे कब की भूला गया मेहसूस सिर्फ धडकन थी...
@hrishkik_j
#महसूस