पराशर संहिता में उल्लेख है।जब हनुमान जी ने सूर्य देव से9में से5प्रकार की विद्याएँ ग्रहण करली तब बाकी विद्याएँ सपत्नीक ही दे सकते थे अतः सूर्यदेव ने अपनी कन्या सुवर्चला से उनकी शादी करवाई।विद्या पूरी होने पर वे तपस्या में लीन हो गयीं
लेकिन हनुमान जी इसअवधि में भी ब्रम्हचारी ही रहे ।।