All copy right reserved
copy paste करने की अनुमति नहीं है
केवल share किया जा सकता
'मुखर मौन'
मौन नदी सा अथाह,
मौन मुखर सा,
गहरे रेगिस्तान की म्रगतर्ष्णा तक,
एक फुस्फुसाता मौन,"
ये मौन शक्ति है,
असीम समुंद्र को भीतर से प्रतिबिंबित करता है,
एक असीम बूँद,
जब कुछ नहीं होता
और
कोई नहीं होता है,
तो मौन होता है ...
एक साथी जो एक विचार भी है,
लेकिन दूर है,
सभी के आघात या सबसे शांतिपूर्ण,
या आनंदमय समय में,
बस केवल जो साथ है,
तो मौन है....
इस मौन मे शब्दों का डंक है,
ये ना बधिर है ना द्रष्टिहीन,
मूक क्षितिज का व्यतिरेक है,
कोलाहल की चुप्पी है,
और
चुना हुआ मौन है.....
इसलिए नहीं कि मेरे पास राय नहीं है,
मैंने चुप्पी इसलिए नही चुनी,
कि मेरे पास विचार नहीं हैं,
मैंने चुप्पी इसलिए चुनी,
क्योंकि
भावनाओं को व्यक्त करने का,
मेरे पास एकमात्र विकल्प है,
तो मैंने मौन को चुना.....
तुम सब
इस मौन को तोड़ना चाहते हो,
पर मैं अपने भीतर समा लेना चाहती हूँ,
सबके महाशून्य,
चल 'तू' और 'मैं '
इस मौन नदी को पार करेंगे,
देखें
कौन डूबता है और कौन तरता है ......
स्वरचित ...
नन्दिता रवी चौहान
All copy right reserved
copy paste करने की अनुमति नहीं है
केवल share किया जा सकता