ध्येय तक पहुंचने के लिए
अपने नेह को पाने के लिए
करे जतन, बड़े हाथ पैर मारे
बहुत भटका मैं संसार सारे
पर नियति को शायद
कुछ और ही मंज़ूर था
इतना सब करने पर भी
भाग्य के हाथों मज़बूर था
मैं तो कहीं को चला था
और जाने कहां पहुंच गया
मेरा मन तो कहीं रमा रहा
पर मैं कहीं और ही थमा रहा
सोचता हूं कि नियति के फंदे से
क्या कोई इंसान बच पाया होगा
और मेहनतकश हाथों से वो
मनभावन संसार रच पाया होगा
बहुत संभलकर चलने की चाह में
शायद भूल गया मन की राह मैं
कठिन डगर पर गिरने के भय से
शायद भटक गया मन की लय से
:- भुवन पांडे
#नियति