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abhay pandit

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@vikad

कविता शीर्षक: "मिलन की वो पहली रात"


छू गया आज तेरा एहसास फिर से,
बिन कहे तू आ गया, मेरे पास फिर से।
हवा में घुली तेरी बातें हैं जैसे,
फिज़ाओं ने गा दिया कोई राग मधुर ऐसे।

तेरी आँखों की नमी, मेरा सुकून बन गई,
तेरी मुस्कान मेरे दिल की जुनून बन गई।
हम मिले थे जैसे पहली बार उस रोज़,
जैसे वक़्त भी ठहर गया हो, थम गए हों साज़।

तेरे हाथों की गर्माहट में छुपी कोई दुआ थी,
जो मिलकर आज, अधूरी हर तमन्ना पूरी हुई थी।
ना कोई वादा था, ना कोई कस्में भारी,
फिर भी दिल ने मान ली, बस तेरी ही ये सवारी।

तेरी बातें जैसे चाँदनी रातों की शीतल छाया,
हर लफ्ज़ तेरा दिल को बहलाए, मन को भाए।
मिलन का ये पल जैसे स्वर्ग से कोई तोहफा हो,
रब ने खुद आज हमको एक-दूजे के लिए लिखा हो।

अब ना कोई दूरी, ना कोई फ़ासले बाकी,
तू मेरा है, मैं तेरी — यही है सबसे सच्ची बाती।
हर जनम में बस यही एक दुआ मांगते रहेंगे,
तेरे साथ जीएंगे, तेरे साथ मरेंगे।

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🌅 दोस्ती

✍🏻 लेखक: Abhay Pandit

तेरी बातों में जो सुकून था,
वो अब भी खामोशियों में ढूँढता हूँ।
तेरे संग बीते लम्हें
आज यादों की भीड़ में सबसे ऊँचे खड़े हैं।

तेरी हँसी, वो पागलपन,
कभी गुस्सा, कभी अपनापन।
वो बिना वजह लड़ना, फिर
एक मिनट में फिर से जुड़ना।

तेरे बिना ये चाय भी फीकी है,
और वो पुराने रास्ते अब सुने-सुने हैं।
दोस्ती कोई रिश्ता नहीं,
ये तो एक इबादत है, एक वादा है।

अगर कभी फिर मिलो,
तो उसी मुस्कान के साथ आना…
जहाँ से छूटी थी कहानी,
उसे फिर वहीं से दोहराना।

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⚡ 4.
कमज़ोर नहीं वो जो गिरा है,
बल्कि वो है जो फिर भी खड़ा है।
जिन्हें खुद पर भरोसा होता है,
वो ही इतिहास रचते हैं जब वक़्त बड़ा है।
✍️ लेखक: अभय पंडित

मुझे फ़ॉलो करो दोस्तो

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🌅 3.
मंज़िल वही है जो थका दे रास्तों में,
पर रुकने न दे सपनों की चाह में।
तू चलते रह यकीन के साथ,
किसी दिन जीत होगी तेरे ही नाम में।
✍️ लेखक: अभय पंडित

मुझे फॉलो भी कर लीजिए मेरे दोस्त

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हर अंधेरे के बाद उजाला जरूर आता है,
हर तूफ़ान के बाद सवेरा मुस्कुराता है।
जो झुकते नहीं हालातों के आगे,
जीत उन्हीं का मुक़द्दर बन जाता है।
✍️ लेखक: अभय पंडित

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🔥 1.
थक कर बैठ जाने से मंज़िल नहीं मिलती,
हौसलों से ही तो रौशनी निकलती।
चलो तब तक जब तक साँस चले,
क्योंकि रुक जाने से किस्मत नहीं बदलती।
✍️ लेखक: अभय पंडित

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"कविता" : (यारी की चिरागी)


चाँदी सी रातें, दीपक का उजाला,
कच्चे आँगन में बैठी वो महफ़िल निराला।
माटी की खुशबू, खामोश हवाएँ,
और दो यारों की हँसी की सदाएँ।

"तू है तो क्या ग़म है," कह कर मुस्काना,
वो गली के मोड़ पर तेरा मेरा ठिकाना।
लाठी लिए बुढ़ा वक़्त भी मुस्काए,
जब दोस्ती की राहों में फूल बिछाए।

> तू मेरा यार है, तू मेरा फ़क्र है,
हर दर्द में तू ही मेरा ज़िक्र है।
नफ़्स-नफ़्स में बसी है तेरी ख़ुशबू,
दोस्ती में तेरा ही असर है।

>बचपन की वो मिट्टी, वो खेल, वो छुपन-छुपाई,
तू साथ था तो हर बात थी भाई।
अब वक़्त के परिंदे उड़ चले हैं दूर,
मगर दिल में अब भी तेरा नाम है हज़ूर।

दोस्ती ना वक़्त मांगे, ना हालत की चाह,
ये तो वो रिश्ता है जो बस करे राह।
न रहे तू पास, न सुन सकूं तेरा स्वर,
फिर भी तेरे बिना अधूरा है मेरा ये सफर।

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कविता शीर्षक: "तेरा नाम लिखा है साँसों में"
✍️ लेखक: अभय पंडित


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तेरा नाम लिखा है साँसों में,
हर लम्हा तुझसे एक रिश्ता सा है।
ना कोई दस्तख़त चाहिए इश्क़ का,
ये तो रूह का लिखा क़िस्सा सा है।

लबों पे जब भी तेरा ज़िक्र आया,
दिल ने सज्दों की सदा दी है।
तेरे बिना ये ज़िंदगी अधूरी सी,
जैसे बिन बारिश के बदली सी।

तेरी हँसी में फ़साना बसता है,
तेरी ख़ामोशी में भी शेर लिखे हैं।
हर एहसास तुझसे होकर गुज़रा,
हमने इश्क़ तुझसे इस तरह जिए हैं।

तेरा नाम है मेरे अशआरों में,
तेरा ज़िक्र मेरी ग़ज़ल बना है।
हर हरफ़ में तेरा ही अक्स है,
तू ही मेरी मोहब्बत की असल बना है।

कभी तुमसे मिलकर वक़्त रुक सा जाए,
कभी तेरी जुदाई में सदियाँ बीतें।
इश्क़ को देखा है मैंने तेरी आँखों में,
जैसे क़ुदरत भी तुझसे रश्क़ करे।

ना कोई शिकायत, ना कोई गिला,
बस तुझसे जुड़ी हर बात मुक़द्दस है।
तेरा नाम जब लिया दिल ने,
तो महसूस हुआ — ये इबादत है।

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💔 "आख़िरी मुलाक़ात" 💔

वो जुलाई की एक शाम थी, जब शहर की सड़कों पर बारिश की बूँदें झूम-झूम कर गिर रही थीं। लोग भीगने से बचने के लिए दौड़ रहे थे, लेकिन आरव छतरी के बिना ही चलता जा रहा था — जैसे उसे किसी चीज़ की परवाह ही न हो।

उसे सिर्फ़ एक जगह पहुँचना था — वही पुराना कॉफ़ी हाउस, जहाँ वो और सिया हर शुक्रवार मिला करते थे।

दो साल पहले, इसी जगह पर उनकी पहली मुलाक़ात हुई थी। सिया की मुस्कान, उसकी आंखों की गहराई और वो कॉफ़ी का छोटा कप — सब कुछ अब आरव की यादों का हिस्सा बन चुका था।

सिया अब इस शहर में नहीं थी। उसे अपने करियर के लिए मुंबई जाना पड़ा था। उन्होंने वादा किया था कि दूर रहकर भी उनका प्यार कम नहीं होगा। लेकिन धीरे-धीरे फोन कॉल्स कम होने लगे, मैसेज जवाब का इंतज़ार करने लगे, और एक दिन... सब कुछ ख़ामोश हो गया।

आरव हर शुक्रवार वहीं आता रहा, उसी कोने की टेबल पर बैठा — दो कप कॉफ़ी मंगवाकर। एक अपने लिए, एक उसके लिए। जैसे वो आज भी यहीं हो।

आज बारिश कुछ अलग सी थी। भीगती हवा में कोई पुरानी महक थी — सिया की ख़ुशबू जैसे लौट आई हो।

वो जैसे ही टेबल तक पहुँचा, उसके पैरों तले ज़मीन खिसक गई।

सिया वही बैठी थी। वही हलकी नीली शॉल, वही मुस्कान... पर आंखों में कुछ और था। इंतज़ार, पछतावा और प्यार — तीनों एक साथ।

“तुम अब भी आते हो?” उसने पूछा।

आरव कुछ नहीं बोला। बस हल्के से मुस्कुरा दिया।

सिया की आंखें भर आईं, “मैं बहुत कुछ कहने आई थी... लेकिन अब लग रहा है, शायद कुछ कहना ज़रूरी नहीं।”

आरव ने उसका हाथ थाम लिया — वो हाथ जो दो साल पहले छूट गया था।

“प्यार अगर सच्चा हो, तो वो लौट आता है... तुम्हारी तरह,” उसने धीरे से कहा।

उस दिन, बारिश सिर्फ़ मौसम नहीं थी। वो दोनों के बीच जमी हुई चुप्पियों को पिघला रही थी। दो टूटे दिल फिर से जुड़ रहे थे।

“आख़िरी मुलाक़ात” एक नई शुरुआत बन गई।

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🌙 "तुम्हारे नाम की ख़ामोशी – भाग 2" 🌙

तुम्हारा नाम...
अब मैं नहीं लेता ज़ोर से,
क्योंकि वो हर बार दिल को तोड़ जाता है,
हर बार मुझे तेरी आंखों का सन्नाटा याद दिला जाता है।


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अब मैं तुम्हें पुकारता नहीं,
पर हर ख़ामोशी में तुमसे बातें करता हूं।
जैसे रातें करती हैं चाँद से —
दूर रहकर भी, सबसे पास।


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तुम्हारे नाम की ख़ामोशी
अब मेरी आदत बन गई है।
हर सुबह तेरे बिना शुरू होती है,
और हर रात... तेरे ख्यालों में डूब जाती है।


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लोग पूछते हैं —
"क्या अब भी तुझसे मोहब्बत है?"
मैं मुस्कुरा देता हूं...
क्योंकि मोहब्बत अब इबादत हो चुकी है —
जहाँ नाम नहीं लिया जाता,
बस महसूस किया जाता है।


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तुम्हारे नाम की ख़ामोशी,
अब शोर से प्यारी लगती है।
क्योंकि उस चुप्पी में भी,
बस "तुम" ही सुनाई देते हो।

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