"लॉकडाउन के क्षितिज इस पार"
--------------------------------------
कोरोना के संक्रमण काल में
अक्सर मुझे ऐसा महसूस हुआ है
पूरी दुनिया सिमट चुकी है
चारो दिशाएं पास आ गई हैं
दुनिया की सड़कें छोटी हो गई हैं
गलियां समाप्त हो चुकी हैं
महल झोपडी में तब्दील हो गए हैं
झोपडी की जरुरत नही रही जैसे
ख्वाहिशें अब मानव के इर्दगिर्द
नहीं घूमने का संकल्प ले रखी हैं।
कोरोना के संक्रमण काल में
अक्सर मुझे ऐसा महसूस हुआ है
सूरज धरती का अगूंठा चूसता है
चाँद चांदनी से आलिंगन करता है
हवाओं के झोके प्रकृति के होंठ चूमते हैं
पेड़ों की टहनियां धरती माँ की गोद में
बैठकर बक्षस्थल से जैसे खेलती हों
जंगली जानवर शहरों की यात्रा पर हैं
पंछी खुले आसमान में दाँना चुगतें हैं!
कोरोना के संक्रमण काल में
अक्सर मुझे ऐसा महसूस हुआ है
हिमालय की चोंटी नीचे उतर कर
गोमुख के हरहराते जल को पी रही है
गंगा जनुमा सरस्वती की गुफ्तगू ऐसे
जैसे ये तीनो बहने सदियों बाद मिली हैं
सागर अपनी पूरी ताकत से जैसे
नदियों को अपने आगोश में ले रहा है
जल शुद्धिकरण का पूरा पीड़ा जैसे
प्रकृति ने अपने हाथों में उठा लिया है
वायु देवता की ख़ुशी ऐसी जैसे
वो आसमान की छाती में नृत्य कर रहे हैं!
रचनाकार-शिव भरोस तिवारी “हमदर्द”
सर्बाधिकार सुरक्षित है..........