कभी इन रास्तों पर, हमारे
कदमों की छाप हुआ करती थी।
तुम्हारे होठों पर, हमारे होठों पर
अल्फाजों की बरसात हुआ करती थी।
कभी नजरों से, तो कभी दिल से
इजहार-ए-गुफ्तगु हुआ करती थी।
यह सुनसान सड़के, हमारे
रिश्तो की सौगात हुआ करती थी।
न में अनजान था, न तुम अनजान थी।
ना कसूर मेरा , ना तुम कसूरवार थी।
यह जवानी की पहली फुहार थी।
जिसकी जैविकी जिम्मेदार थी