** कविता **
जितना हम तुमसे दूर रहे ।
उतनी ही मिलन की आस रहे ।।
तेरे दिल में सदा बसते रहे ।
फिर भी देखने की चाह रहे ।।
तू कभी अंखियों से दूर न रहे ।
फिर भी मिलने की उत्कंठा रहे ।।
चाँद से मुखड़े से सदा दूर रहे ।
फिर भी दीदार को तरसते रहे ।।
तेरी आस सदा ही करते रहे ।
फिर भी मिलने को तड़पते रहे ।।
बृजमोहन रणा , कश्यप ,कवि ,अमदाबाद ,गुजरात ।