चंद लोगों का मिशन!
हमारे यहां मॉडिफाइड या सेंसर्ड लिट्रेचर का चलन भी रहा।
इसकी बदौलत गांव - गांव में बच्चा जानता है कि बस्ती के मुहाने पर एक पीपल का पेड़ होता है, जिसके समीप कोई खंडहर होता है, जहां "भूत" रहते हैं। अंधेरा होते ही वहां नहीं जाना चाहिए, जो वहां गया जिंदा वापस न आया।
और इस तरह उस पीपल की खौफ़नाक छैयां में ज़माने भर के असामाजिक व आपराधिक काम होते रहे। चोरी के माल की बंदरबांट, ठगी की अय्यारियां, डाकेजनी के ब्लू प्रिंट, जुए और नशे के खेल, अस्मतों पर हमले... सब वहीं अंजाम पाते रहे।
इधर कुछ लोगों का मिशन होता कि समाज में गंदगी न रहे, तो उधर कुछ लोगों की साज़िश होती कि साहित्य और पत्रकारिता में गंदगी न "दिखे"!