रिहाई है,
अब मुजे मेरे खुद के बनाए कफ़स से,
चलो हमारे सीमित आसमा की फिलहाल बात नही करते।
रिहाई है,
अब हमे इस सोच की कैद से,
दिल के कोनो की फिलहाल बात नही करते,
रिहाई है,
अब हमें तुम्हारी मौजूदगी की कुतूहल से,
हमारे लिखे अल्फाज़ो की फिलहाल बात नही करते।
-मलंग
कफ़स-पिंजरा