घर में समय काटना तो बहुत आसान है!
क्या आप जानते हैं कि आज के समय का ये सोने सा सुनहरा सुझाव हमें कहां से मिला?
जी मोहतरमा सायरा बानो से!
एक समय की नामचीन फिल्मी हस्ती नसीम बानो की लाड़ली, फ़िल्मों की थिरकती बिजली यानी "वाइब्रेंट गर्ल" सायरा बानो ने फ़िल्में छोड़ने के बाद का सारा वक़्त घर में ही बिताया।
वे न तो आशा पारेख और हेमा मालिनी की तरह नृत्य सीखने- सिखाने की दीवानी रहीं, और न ही उन पर बबीता और तनुजा की तरह अपनी संतान की ग्रूमिंग की ज़िम्मेदारी थी। लेकिन फ़िर भी घर में ही रहते हुए मज़े की कटी।
कैसे?
इस प्रश्न का ख़ूबसूरत जवाब सायरा जी एक छोटे से जुमले में दे देती हैं। वे कहती हैं कि उनके हसबैंड उनके लिए फुलटाइम जॉब रहे।
अब आप चाहें तो इसके लिए दिलीप कुमार साहब का शुक्रिया अदा कर सकते हैं।
फ़िल्म समीक्षक कभी सायरा बानो के अभिनय पर कुछ नहीं कहते थे। ये बात और है कि उनकी फ़िल्में बॉक्सऑफिस पर निर्माता की झोली भरने में कभी पीछे नहीं रहीं।
लेकिन ऐसी बात नहीं कि सायरा बानो ने कभी काम की फ़िल्मों में काम ही न किया हो।
बरसों पहले एक फ़िल्म आई "दामन और आग"। इसमें सायरा बानो के हीरो थे संजय खान। दर्शकों का दिल तब दहल गया जब उन्होंने सायरा जी को एक विमान से पैर में प्लास्टर ऑफ पेरिस के साथ देखा। जैसे- तैसे लंगड़ाते हुए वो किसी तरह जहाज से उतर कर कार में सवार होकर घर आईं। लेकिन घर आते ही उनकी बांछें खिल गईं जब उनका प्लास्टर कटा और उसमें से बेशकीमती हीरे निकले।
भोली- भाली सायरा नहीं जानती थीं कि ख़ुद उनके पिता वही बड़े स्मगलर हैं जिसे उनके प्रेमी हीरो संजय खान ढूंढ़ते फ़िर रहे हैं।
इसके बाद विधि का विधान देखिए कि सायरा का दामन औलाद से ख़ाली ही रह गया और संजय खान के "टीपू सुल्तान" के सेट पर भयानक आग लग गई।
सायरा बानो की ये मासूम अच्छाई दर्शकों ने देखी न देखी, विख्यात फिल्मकार ऋषिकेश मुखर्जी ने ज़रूर देखी।
उन्होंने आव देखा न ताव, सायरा बानो को अपनी फ़िल्म "चैताली" के लिए साइन कर लिया।
फिल्मी पंडित मुखर्जी साहब की इस नादानी पर भौंचक्के रह गए। वे ऋषि दा को उस मासूम बच्चे की तरह घबरा कर देखने लगे जिसने खेल- खेल में शीशे का गिलास हाथ में उठा लिया हो। जैसे अब कभी भी, कुछ भी हो सकता हो।
कॉलेज के ज़माने में मैं और मेरा एक करीबी दोस्त जब थियेटर में "चैताली" देख रहे थे तब मेरे मित्र ने मासूमियत से कहा- यार, ये ऋषिकेश मुखर्जी कहीं सायरा बानो का कैरियर स्पॉयल न कर दें!
सचमुच फ़िर चंद फ़िल्में दिलीप साहब के साथ करने के बाद सायरा जी का समय चंदा और सूरज की तरह रोज़ निकलते- ढलते यूं ही बीत गया।
जो मोहतरमा कहती थीं- घर -वर -नाम -वाम मैं क्या जानूं रे...वे घर में ही समा गईं।
तो उनकी कहानी पढ़िए और घर में ही रहिए!