पूछना तो तुमसे भी है,
क्या याद भी आती हूं किसी रोज़..
चलो ठीक है हर रोज़ भी..
याद नहीं किया जा सकता,
पर कभी सुबह का पहला ख़्याल..
रही हूँ किसी रोज़..
हां माना कि नहीं आयी होगी याद,
मीठे सपनों की महफ़िल में..
पर कभी थककर सोने लगे होंगे..
नींद के आगोश में,
वो दिल का आख़िरी ख्याल..
रहीं हूं किसी रोज़..
चलो इतना ही बता दो...
तुम्हारी नफ़रतों का हिस्सा तो..
रहीं हूँगी कभी..
या मेरे वजूद का..
एक हिस्सा भी तुम्हें अब मंजूर नहीं..
#पूछना