Hindi Quote in Poem by Reshma Patel

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सृष्टि पर वो सर्वोत्तम जीव था,
वाणी विद्या का उसे वरदान जो मिला था।
पर,
अपने ऊपर घमंड बड़ा था।
सृष्टि का सौदा करने चला था।
हरदम आगे बढ़ रहा था,
प्रकृति से मुँह मोड़ रहा था।
अपने पैरों तले उसे कुचल रहा था।
परिणाम तो उसको अब भुगतना था,
अब उसे अपने ही घर में कैद होना था।
खिल रही है प्रकृति अब फिर से...
हवा पानी शुद्ध हो रहे हैं फिर से...
पशु पंखी अब जी रहे हैं फिर से...

Hindi Poem by Reshma Patel : 111403300
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