बेवजह में, बेवजह तु, बेवजह है जिंदगी,
सुबह जल्दी उठ करे तो करे भी क्या ?
एसे बेवजह जिया नहीं जाता,
रोज सुबह ज़ादा नींद के लिये तडपना है!
पाँच मिनिट जादा सोने के कारण लेट होना है
जल्द पोहचने के लिये बिना खाए भागना है
हर रोज़ हज़ारो अनजाने चेहरे देखना है
जिन में से चंद चेहरो को जानना है
किसी को देख के मुस्कुराना है,
ठहाके मार हसना है, काम मे गलती करनी है
किसी से डाँट खानी है,
फ़िर
देर से उठने के लिए खुद को कोसना है
एसे हि जिते जाना है!
क्योंकि अच्छा लगता है खुद को पागल केहेलवाना,
दुसरो कि नजर से खुद को देखना,
दम घुतटा है चार दिवारी में,
मन मचलता है बहार जाने मैं,
हताशा-निराशा बुलाति है मुझे,
नए नए खेल सिखाती है मुझे
गुस्सा, चिड़-चिडापन ओर अकेलेपन से मिलवती है मुझे.
मेहसुस करवाता है के
कुछ अपने से लगते चेहरे, एक आसमा का टुकडा ओर चार दिवारे तेरी दुनिया कभी नहीं हो सकते...!
दिवांगी तु हज़ारो आसमान देखने के लिए, आगे बढ़ने के लिए, ठोकरे खाने के लिए, गिरकर सँभलने के लिए बनी हैं
अगर किसी ने तुझे पंछी कि तरह केद किया,
तो अपने हि ख्याल तेरा गला घोट देंगे,
तेरी धडकन का शोर हि तेरी सासे छिन लेगा
अगर
ज़िन्दा रेहना है तो कुछ करना है करते रेहना है
बस अब तो तेय है के मरते दम तक मरना नहीं है !
बस एसी ही है तु
ओर तु जेसी भि है कितना भि ढाए खुद पे अत्याचार है तु मेरा प्यार है.... 😘
-दिवांगी जोषी