लुत्फ़ आता है हमें अब फरेब खाने में,
आजमाया लोगों को, रोज़ आजमाने में..!
दो घड़ी के साथी को हम सफ़र समझते हैं,
किस कदर पुराने है..? हम नये जमाने में..!
तेरे पास आने में, आधी उम्र गुज़री हैं,
आधी उम्र गुज़रेगी तुझसे दूर जाने में..!
एहतियात रखने की कोई हद भी होतीं हैं,
भेद हमनें खोले है, भेद को छिपाने में..!
जिंदगी तमाशा है, और इस तमाशे में,
खेल हम बिगाडेगे, खेल को बनाने में..!