Hindi Quote in Poem by shiv bharosh tiwari

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"घर के अन्दर"
आज भरी दोपहरी में
आसमान के ज़र्रे ज़र्रे में
छा रहा था कोरोना का धुआं
देर तक मै उसे देखता रहा
वह जैसे तुला बैठा था
ज्यादा घनघोर होने को

सारी दोपहरी उसकी अगोश में
कहीं कोई अनहोनी न हो
इसलिए मै आशंकित हो रहा था
देखकर फेफड़े सुन्न हो रहे थे
यह सब सहा नहीं जा रहा था
मन ही मन मै चीखे जा रहा था
क्या करता कुछ बस में नही था

काश, कोरोना की बादशाहीयत को
मैं एक ठीकरा उठा कर मार पाता
मेरे मारने से क्यों भागता?
उसे भगाने के लिए
पूरी दुनिया के बैज्ञानिक लगे हैं
मैं भी परास्त होकर
हाथ से ठीकरा डाल दिया

यह कह कर घर के अन्दर आ गया
अब तो घर में रहकर ही
इस महामारी से सामना करूँगा
जिन्दगी में पहली बार
मै खुद को परास्त पाया है!
किताब-"भारत बन्दी के वो इक्कीस दिन" से
लेखक-शिव भरोस तिवारी "हमदर्द"

Hindi Poem by shiv bharosh tiwari : 111387471
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