💐पत्रकार का माइक💐
अचानक जो शुरू हुआ
उन परिस्थितियों के लिए
वो बिलकुल तैयार नहीं थे
वो चीखने और चिल्लाने लगे
मुश्किलें उनके हलक में
जरा भी उतर नही रहीं थीं
मज़बूरियों ने पांव में पूरी ताकत
के साथ बेड़ियां डाल चुकी थीं
उनके मन में एक लम्बी जिरह की
सुरुआत ने डेरा जमा लिया था
उस जिरह में हर कोई अपनी
उपस्थिति दर्ज कर रहा था
मगर सब पास पास खड़े थे
जबकि समाजिक दूरियां बना कर
जिरह में भाग लेने की शर्त थी
उनके पास मास्क नहीं था
रुमाल थी जिससे पूरी तरह वो
मुंह और नाक़ में धंसा रखे थे
सामने एक पत्रकार माइक को
उनके जबड़े में धंसाए जा रहा था
वह बहुत ही कशमकस में थे
क्या बोलें?
थूथना में माइक दताएं पत्रकार से
बिपत्तियों की बौछारे तेज हो रहीं थीं
सिर पर पचास किलो का गठ्ठर था
आवाज गले में फंस गई थी
उनके सिर से लहू बह रहा था
क्योकि पचास किलो का गठ्ठर
उनकी मुस्तैदी के साथ
निगरानी जो कर रहा था
पत्रकार अब भी उसके सामने था
उनकी जिभवा और सख्त हो रही थी
जबड़े ऐसे हो गए थे जैसे घन
पत्रकार आतुर था
सुनने के लिए उनकी आवाज
पत्रकार पूरे द्रश्य का नायक लग रहा था
बस उनके मुंह से एक आवाज फूटी
सरकारें हमे अपने गांव पंहुचा दें
हम परिवार सहित तीन दिन से भूखे हैं।
किताब-"भारत बंदी के वो इक्कीस दिन" से
लेखक-शिव भरोस तिवारी "हमदर्द"