अपना समय !
1941 में एक लड़की का जन्म होता है। चौदह साल की उम्र में वो फ़िल्म के पर्दे पर आती है और उन्नीस साल की उम्र में एक मशहूर अभिनेत्री बन जाती है। 33 साल की उम्र में वो फ़िल्मों को अलविदा कहती है और तन्हाइयों में क़ैद हो जाती है।
इसके बाद लगभग तीन दशक बीतते हैं और हज़ारों मील दूर एक लड़के का जन्म होता है। सदी बदल जाती है। लड़का जब सोलह साल का होता है तो एक दिन बैठे बैठे टी वी पर आधी सदी पहले की एक फ़िल्म देखता है।
फ़िल्म की नायिका को देख कर उसके दिल में उस अभिनेत्री के बारे में और जानने की जिज्ञासा पैदा होती है और वो इंटरनेट पर पुरानी चीज़ों को खोजते- खंगालते हुए उस हीरोइन की तमाम फ़िल्में एक एक कर देखने लगता है!
नायिका का हर एक फ़्रेम उसके दिल को छूता है! वो उसकी हर छवि को देखता और सराहता है।
क्रिएटिविटी का कोई समय नहीं होता।
रचनात्मकता का कोई काल नहीं होता।
सौन्दर्य की कोई उम्र नहीं होती।
चाहत की कोई अवधि नहीं होती!