तेरी बाते
आज ही क्यो खयालो में आते रहे हो
नींद चुरा के फिर से,क्यो जगाते रहे हो,
तुम्हारे पास कोई काम नहीं मेरे सीवा
रहम करो मुझपे, क्यो सताते रहे हो,
आदत बना दी, तुने ख्वाब दिखाने की
इन आदतो से अब, क्यो रुलाते रहे हो,
जरा संभल कर इजहार करो प्यार का
ना समझ है बात तेरी, क्यो सुनाते रहे हो,
बिंदीया हरबात समझ जानती है, पता है ?
उसीसे ही हर बार दूरी, क्यो बनाते रहे हो
बिंदी पंचाल "बिंदीया"