यादृच्छिक चांद था वो, बिना मांगे ठंडक पहुंचाता था। मैं थी यादृच्छिक सूरज बिना बात के जल जाती थी। बस इसके आगे हमारी कहानी नहीं बढ़ पाती थी। रूकी रही यादृच्छिक इतने बरस न जाने ये किसकी इच्छा थी। कुछ तो बदलता यादृच्छिक जिसकी मुझे प्रतीक्षा थी।पर बदला नहीं, वो अभी भी उतना ही ठंडा है और मैं उतनी ही गर्म। वो शांत बादलों में छुपा रहता है,न कुछ पूछता है न कहता है। मैं उसकी इसी अदा पे भड़कती रहती हूं यादृच्छिक सूरज बन।
-मिन्नी शर्मा
#यादृच्छिक